बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-4 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 1
असामान्य मनोविज्ञान
(Abnormal Psychology)
प्रश्न- असामान्य व्यवहार क्या हैं ? इसकी कसौटियों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
असामान्य व्यवहार व्यक्ति की अन्तर-मनोवैज्ञानिक दुष्क्रिया है। व्याख्या कीजिए।
अथवा
असामान्य व्यवहार से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
अथवा
असामान्य व्यवहार क्या है? सामान्य व्यवहार की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. सामान्य व्यक्ति को परिभाषित कीजिए।
2. सामान्य व्यक्तित्व की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
3. सामान्य व्यवहार की प्रमुख विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
4. असामान्य व्यवहार को परिभाषित कीजिए।
अथवा
असामान्य व्यवहार क्या है ? संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
5. असामान्य व्यक्तित्व की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
6. सामान्यता तथा असमान्यता के संप्रत्यय का वर्णन कीजिए।
7. असमान्य व्यवहार तथा सामान्य व्यवहार में अन्तर कीजिए।
8. सामान्य तथा असामान्य व्यक्ति में अन्तर कीजिए।
उत्तर-
(Meaning and Definition of Psychopathology)
मनोरोग विज्ञान को मनोविकृति विज्ञान के नाम से भी जाना जाता है। मनोरोग विज्ञान वस्तुतः असामान्य मनोविज्ञान (Abnormal Psychology) की ही एक नवविकसित शाखा है। इस सम्बन्ध में आइजनेक एवं उसके साथियों का कथन है कि-
"मनोरोग विज्ञान मानसिक रोगों या मानसिक विकृतियों का वह व्यवस्थित अध्ययन है जिसके अन्तर्गत मानसिक रोगों के कारणों, मानसिक रोगों के लक्षणों और मानसिक रोगों की प्रक्रियाओं की अध्ययन किया जाता है।".
"Psychopathology is the is the systematic study of the etiology, आइजनेक एवं अन्य (Eysenck et al, 1972) symptomatology and process of mental disorders."
आइजनेक (1972) की परिभाषा से स्पष्ट है कि मनोरोग विज्ञान असामान्य मनोविज्ञान की एक शाखा है जिसमें मानसिक रोगों के लक्षणों, कारणों और प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, परन्तु यह नहीं बताया गया है कि इस विज्ञान में मानसिक रोगों के उपचार का अध्ययन किया जाता है। अतः यह कहा जा सकता है कि मनोरोग विज्ञान या मनोविकृति विज्ञान असामान्य मनोविज्ञान से इस दृष्टि से भिन्न है कि असामान्य मनोविज्ञान में मानसिक रोगों या विकृतियों के लक्षणों, कारणों और प्रक्रियाओं के साथ-साथ मानसिक रोगों के उपचार का भी अध्ययन किया जाता है जबकि मनोरोग विज्ञान के अन्तर्गत मानसिक रोगों के कारणों, लक्षणों और प्रक्रियाओं का अध्ययन तो किया जाता है, परन्तु उपचार का अध्ययन नहीं किया जाता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि यदि मनोरोग विज्ञान के अध्ययन के साथ मानसिक रोगों का उपचार भी जोड़ दिया जाय तो वह असामान्य मनोविज्ञान बन जाता है।
1970-80 के दशक तक मनोवैज्ञानिकों के मध्य यह मान्यता प्रचलित रही कि मनोरोग विज्ञान एवं असामान्य मनोविज्ञान मनोविज्ञान की अलग-अलग शाखायें हैं, परन्तु बीसवीं शताब्दी के अन्त तक यह माना जाने लगा कि ये दोनों अलग-अलग शाखाएँ न होकर एक-दूसरे की पर्यायवाची हैं। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने इन्हें अलग-अलग शाखा न मानकर एक-दूसरे पर्यायवाची माना है। इस सम्बन्ध में कारसन एवं बुचर (Carson and Butcher, 1992) ने लिखा है कि "असामान्य मनोविज्ञान या मनोरोग विज्ञान को लम्बे समय से मनोविज्ञान का एक क्षेत्र माना जाता है, जो असामान्य व्यवहार को समझने, उपचार और रोकथाम से सम्बन्धित है।"
"Abnormal Psychology or Psychopathology has long been referred to as that part of the field of Psychology concerned with the understanding, treatment and prevention of abnormal behaviour". -कारसन एवं बुचर (Carson and Butcher, 1992)
इस प्रकार मनोरोग विज्ञान या मनोविकृति विज्ञान के सम्बन्ध में विभिन्न विचारधाराओं के "आधार पर स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि मनोरोग विज्ञान मानसिक रोगों, उनके कारणों एवं लक्षणों का अध्ययन करने वाली मनोविज्ञान की एक शाखा है।
(Normal Personality)
सामान्य व्यक्तित्व से तात्पर्य उस व्यक्तित्व से लगाया जाता है जिसको धारण करने वाला व्यक्ति प्रत्येक परिस्थिति के साथ सामंजस्य स्थापित करके अपनी दिन-प्रतिदिन की क्रियाओं को सम्पन्न करता है तथा सन्तुलित सामाजिक जीवन व्यतीत करता है। सामान्य व्यक्ति को परिभाषित करते हुए पी.एम. साइमण्ड (P.M. Symond) ने कहा है कि-
"सामान्य व्यक्ति वह व्यक्ति है जो भयावह आघातों और नैराश्य उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर लेता है।'
"The normal person is one who overcomes severe threals and frustrating conditions." -पी.एम. साइमण्ड (P.M. Symond, 1949)
सामान्य व्यक्ति की कसौटियाँ अथवा विशेषताएँ (Criteria or Characteristics, of Normal Person) - साइमॉण्डस (Symonds 1949) के शब्दों में, "वह व्यक्ति सामान्य व्यक्ति है जो भयावह आघातों और नैराश्य उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर लेता है।"
मैश्लो तथा मिटिलमैन (Maslow and Mittleman, 1951) ने सामान्य व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया, है-
1. सुरक्षा की उपयुक्त भावना (Adequate Feeling of Security) - सामान्य व्यक्ति में सुरक्षा की पर्याप्त भावना होती है, वह न तो स्वयं को पूर्ण रूप से सुरक्षित समझता है. तथा न तो पूर्ण रूप से असुरक्षित समझता है।
2. वास्तविकता से प्रभावकारी सम्पर्क (Efficient Contact with Reality) - सामान्य व्यक्ति भौतिक, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक वातावरण से भली-भाँति परिचित होता है। वह अपने समाज के नियमों, रीति-रिवाजों तथा परम्पराओं आदि के विषय में ज्ञान रखता है तथा आवश्यकता के अनुसार उनका पालन भी करता है।
3. उपयुक्त संवेगात्मकता (Adequate Emotionality) - सामान्य व्यक्ति न तो बहुत अधिक संवेगों की अभिव्यक्ति करता है न बहुत कम। उसकी संवेगात्मक अभिव्यक्ति समाज के अन्य लोगों के समान होती है।
4. उपयुक्त आत्म-मूल्यांकन (Adequate Self-evaluation) - सामान्य व्यक्ति अपनी शारीरिक तथा मानसिक योग्यता के अनुसार ही अपना मूल्यांकन करता है। उसमें जितनी योग्यता होती है वह उतना ही अनुभव करता है।
5. स्वयं का उपयुक्त ज्ञान (Adequate Knowledge of Self) - सामान्य व्यक्ति अपनी योग्यता तथा कमियों से भली-भाँति परिचित होता है। वह यह जानता है कि वह क्या कर सकता है और क्या नहीं ?
(Abnormal Personality)
असामान्य व्यवहार या व्यक्तित्व से तात्पर्य उस व्यक्तित्व से लगाया जाता है जिसको धारण करने वाला व्यक्ति सामान्य परिस्थितियों में समायोजन नहीं स्थापित कर पाता है और उसे अपने दिन-प्रतिदिन के कार्यों को सम्पन्न करने में कठिनाई का अनुभव होता है। असामान्य व्यवहार को परिभाषित करते हुए रीगर (Reiger) ने कहा है कि-
"यह वह व्यवहार है जो सामाजिक दृष्टि से अमान्य, दुःखदायी और विकृति संज्ञान के.- परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है।'
"This is that behaviour which is socially unacceptable, painful and appears due to distorted cognition." -रीगर (Reiger, 1998)
इस प्रकार स्पष्ट है कि असामान्य व्यवहार से व्यक्ति को दैनिक जीवन के समायोजन में कठिनाई होती है। अतः असामान्य व्यवहार कुसमायोजित (Maladjusted) होता है।
असामान्य व्यक्तित्व की कसौटियाँ या विशेषताएँ (Criteria or Characteristics of Abnormal Personality) मैश्लो तथा मिटिलमैन (Maslow and Mittleman, 1951) ने असामान्य व्यक्ति की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है-
1. असामान्य व्यक्ति में कुछ विशिष्ट लक्षण होते हैं (Specific Symptoms are Present in Abnormal Person) - सामान्य व्यक्ति तथा असामान्य व्यक्ति के लक्षणों में अन्तर होता है। उनकी मानसिक योग्यता सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा कम होती है। वे जिस मानसिक रोग से ग्रस्त होते हैं. उसके लक्षण उनके व्यवहार से अभिव्यक्त होते हैं।
2. दक्षता का अभाव (Less Efficiency) - असामान्य व्यक्ति में दक्षता का अभाव होता है। वे अपनी इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए क्रियाशील नहीं होते हैं। सामाजिक, व्यावसायिक और धार्मिक कार्यों में रुचि और दक्षता की कमी होती है।
3. अप्रसन्नता की भावना (Feeling of Unhappiness) - असामान्य व्यक्ति में न तो जीवन के प्रति आशा होती है और न ही प्रसन्नता। असामान्य व्यक्ति में चिन्ता, तनाव, द्वन्द्व तथा निराशा के लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं।
4. अत्यधिक सुरक्षात्मक प्रवृत्ति - असामान्य व्यक्ति में अपनी सुरक्षा की प्रवृत्ति अधिक देखी जाती है। कुछ ऐसे रोगी भी होते हैं जिन्हें वास्तविकता का ज्ञान नहीं होता है। उनमें सुरक्षा की भावना न के बराबर रहती है, जैसे - मनोविदलता (Schizophrenia) का रोगी।
(Defferences between Normal Behaviour
and Abnormal Behaviour)
सामान्य व्यवहार तथा असामान्य व्यवहार में गुणात्मक तथा मात्रात्मक दोनों प्रकार के अन्तर होते हैं। गुणात्मक अन्तर से आशय वैसे गुणों की मात्रा से होता है जो असामान्य व्यवहार में दिखाई देते हैं परन्तु सामान्य व्यवहार में नहीं दिखाई देते हैं। मात्रात्मक अन्तर से आशय वैसे गुणों की मात्रा से होता है जो दोनों तरह के व्यवहारों में होते हैं, परन्तु कम और ज्यादा की मात्रा के कारण सामान्य व्यवहार तथा असामान्य व्यवहार में अन्तर करते हैं। सामान्य तथा असामान्य व्यवहार में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं-
1. सूझपूर्ण व्यवहार (Insightful Behaviour) - सामान्य व्यक्ति का व्यवहार हमेशा सूझपूर्ण होता है। सामान्य व्यक्ति को इस बात का ज्ञान होता है कि वह क्या कर रहा है, कैसे कर रहा है तथा कौन सा व्यवहार किस परिस्थिति में करना चाहिए आदि । सामान्य व्यक्ति को नैतिक तथा अनैतिक और सही तथा गलत का ज्ञान होता है। असामान्य व्यवहार में इन गुणों का अभाव होता है। उसमें नैतिक तथा अनैतिक तथा सही एवं गलत का अन्तर करने की सूझ-बूझ नहीं होती है। वह जो कार्य करता है, उसे सही लगता है, चाहे वह कितना भी गलत और अनैतिक हो ।
2. वास्तविकता का ज्ञान (Knowledge of Reality) - सामान्य व्यक्ति को वास्तविकता का पूर्ण ज्ञान होता है। वह अपने व्यवहारों को सामाजिक मानकों की वास्तविकता के अनुकूल करता है। सामान्य व्यक्ति का व्यवहार भ्रम (Illusion), विभ्रम (Hallucination) तथा व्यामोह (Delusion), आदि से ग्रसित नहीं होता है। दूसरी ओर असामान्य व्यक्ति का व्यवहार अवास्तविकता तथा काल्पनिकता से ग्रसित होता है। असामान्य व्यक्ति के व्यवहार में भ्रम, विभ्रम, व्यामोह तथा संभ्रान्ति (Confusion) के लक्षण देखे जाते हैं।
3. संतुलित सामाजिक समायोजन (Balanced Social Adjustment) - सामान्य व्यक्ति का अपने परिवार के सदस्यों तथा सहयोगियों के साथ सौहार्दपूर्ण सामाजिक संबंध होता है। जिसके फलस्वरूप उसका सामाजिक समायोजन संतुलित होता है। ऐसे व्यक्ति सामाजिक नियमों, मानकों तथा मूल्यों का सम्मान करते हैं और उसी के अनुसार सामाजिक संबंधों को बनाने का प्रयास करते हैं। असामान्य व्यक्ति सामाजिक नियमों, मानकों तथा मूल्यों की अनदेखी करता है। ऐसे व्यक्ति की अपनी निजी दुनिया होती है। उसमें सामाजिक कुसमायोजन (Social maladjustment) की समस्याएँ देखी जाती हैं।
(Types of Abnormality)
असामान्यता के व्यवहार को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है
1. मनोविकार व्यक्तित्व - मनोविकार व्यक्तित्व के कुछ रोगी ऐसा व्यवहार करते हैं, जो न ही सामान्य व्यवहार के अनुकूल होता है और न ही उसे मनोखायु विकृति से पीड़ित ही कह सकते हैं।
2. मनः स्नायु विकृतियाँ - इस प्रकार की विकृति में कठोर परिस्थितियों में मनुष्य अस्त- व्यस्त तथा असन्तुलित हो जाता है। इस प्रकार के मानसिक रोग में उग्रता तथा तीव्रता का अभाव होता है।
3. मनोविकृति - मनोविकृति में मनःस्नायु विकृति से अधिक तीव्रता होती है। मनोविकृति में यदि मनुष्य का मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है तो सामाजिक अभियोजन भी असन्तुलित हो जाता है। इस कारण रोगी के व्यक्तित्व का विघटन होता है। रोगी के व्यवहार में दोषपूर्ण उतार- चढ़ाव आ जाता है तथा लोग उसे पागल समझने लगते हैं, रोगी कल्पना में खोया रहता है। मनोविकृति का रोगी अपने आप को कवि, चित्रकार, गायक तथा अभिनेता समझने लगता है, कभी-कभी इसका रोगी समाज को अपने खिलाफ समझता है। इस तरह की विकृतियों में उत्साह, विषाद, स्थिर व्यामोह, मनोविदलता आदि प्रमुख हैं।
4. मानसिक दुर्बलता - यह असामान्यता निम्नलिखित प्रकार की होती है -
(i) अल्प बुद्धि - इस असामान्यता में सभी बुद्धिहीन व्यक्तियों में अधिक बुद्धि होती है। यह रोगी कुछ काम आराम से कर लेते हैं एवं सामान्य कार्यों को यह आसानी से सीख जाते हैं।
(ii) जड़मति - इस असामान्यता में रोगी की बुद्धि बहुत कम होती है। यह रोगी अपनी दैनिक क्रियाओं को तथा अपनी रक्षा ठीक ढंग से नहीं कर सकता।
(iii) क्षीण बुद्धि - इस प्रकार की असामान्यता के रोगी में जड़मति रोगी से ज्यादा बुद्धि होती है। यह रोगी अपने दैनिक कार्यों को तथा अपनी सुरक्षा आराम से कर लेता है।
|